BLOG-03 ब्रह्माकुमारीज़ कल्ट से बाहर आने की कहानी







नमस्कार दोस्तों,


आज मैं आपसे एक ऐसे व्यक्ति की कहानी साझा करना चाहता हूं जो ब्रह्माकुमारी नामक कल्ट से बाहर निकलने में सफल रहे। सतीश जी ने 20 साल तक ब्रह्माकुमारी में अपना समय बिताया, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें एहसास होने लगा कि यह संस्था उनके लिए सही नहीं है।


इस ब्लॉग पोस्ट में, सतीश जी ब्रह्माकुमारी में अपने अनुभवों के बारे में बताते हैं, और यह भी बताते हैं कि कैसे उन्होंने इस कल्ट से बाहर निकलने का साहस दिखाया। उनकी कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा हो सकती है जो अभी भी ब्रह्माकुमारी या किसी अन्य कल्ट में फंसे हुए हैं।


यह ब्लॉग पोस्ट आपको यह समझने में भी मदद करेगा कि कल्ट कैसे काम करते हैं और वे लोगों के जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं।


इस पोस्ट में आप जानेंगे:


ब्रह्माकुमारी में सतीश जी का अनुभव कैसा था?

कल्ट से बाहर निकलने का फैसला करना उनके लिए कितना मुश्किल था?

कल्ट से बाहर निकलने के बाद उनका जीवन कैसे बदला?

कल्ट इतने खतरनाक क्यों होते हैं?


सतीशजी लिखते है ….


सबसे पहले, मैं विनय जी को उनके इस ब्लॉग को शुरू करने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ। यह ब्लॉग उन लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, जो ब्रह्मा कुमारी के बारे में सच्चाई जानने के इच्छुक हैं और शायद इस संस्था को ज्वाइन करने पर विचार कर रहे हैं


हम सबका मूल उद्देश्य ही है कि ब्रह्मा कुमारी से जुड़ी सही जानकारी लोगों तक पहुंचे। अक्सर देखा गया है कि जब हम किसी संस्था को ज्वाइन करते हैं तो उसके बारे में हमें पूरी जानकारी नहीं होती है। ब्रह्मा कुमारी का मामला भी कुछ ऐसा ही है। इसके नियमित विद्यार्थियों के पास भी इस संस्था के बारे में उतना ज्ञान नहीं होता है, जितनी जानकारी उन्हें यहां से बाहर निकलने के बाद प्राप्त होती है।


मैं इसे एक तरह से ब्रेनवॉशिंग की प्रक्रिया मानता हूँ। इस प्रक्रिया में हमारे मन और बुद्धि को इस तरह नियंत्रित कर लिया जाता है कि हम केवल एक ही दिशा में सोचने लगते हैं।


हालांकि, कभी-कभी कुछ ऐसे अनुभव होते हैं जो हमें झकझोर कर रख देते हैं और हमें इस संस्था के वास्तविक स्वरूप के बारे में सोचने को मजबूर करते हैं। हम बाहर के स्त्रोतों से जानकारी इकट्ठा करना शुरू करते हैं और चीजों को अलग नज़रिए से देखने लगते हैं।


ब्रह्मा कुमारी हमेशा हमें यही सिखाती है कि हमें बाहरी ज्ञान पर ध्यान नहीं देना चाहिए। उनका दावा है कि हमारे शास्त्र, वेद, पुराण और गीता जैसे ग्रंथों में लिखी बातें गलत हैं। वे हमें विश्वास दिलाते हैं कि सत्य ज्ञान तो केवल वही है जो वे सुनाते हैं और हमें केवल उन्हीं पर यकीन करना चाहिए।


एक बार जब हम उन पर भरोसा कर लेते हैं और पूरी तरह से इस संस्था को समर्पित हो जाते हैं, तब उनका असली शोषण शुरू होता है। हालांकि यह शोषण प्रत्यक्ष रूप से नहीं होता। लेकिन यह हमारे जीवन जीने के तरीके, हमारी विचारधारा और हमारी मानसिक स्वतंत्रता पर गहरी चोट करता है।


हर मनुष्य का अधिकार है कि वह अपनी सोच रखे और स्वविवेक से फैसले ले। लेकिन ब्रह्मा कुमारी में हमें एक ढर्रे पर सोचने के लिए बाध्य किया जाता है। वहां का माहौल ऐसा होता है कि हमें लगने लगता है कि उनके द्वारा दिया गया ज्ञान ही पूर्णतः सत्य है और बाकी सब झूठ।


इस ब्लॉग में, मैं अपना ब्रह्मा कुमारी से जुड़ा पूरा अनुभव शेयर करना चाहता हूँ। मैं आपको बताऊंगा कि मैंने वहां क्या देखा, क्या महसूस किया और इससे निकलने के बाद मुझे क्या-क्या सच्चाई पता चली।



मेरा जीवन ब्रह्माकुमारीज से पहले

1998 में, मैं एक युवा ग्रेजुएट था, नौकरी की सख्त तलाश में। हमारी पारिवारिक आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी।  मैं हमेशा से संवेदनशील स्वभाव का रहा हूँ, इसलिए छोटी-छोटी समस्याएँ भी मुझे डिप्रेशन में डाल देती थीं। नौकरी न मिलने की वजह से मैं निराश था, मेरे पिताजी भी रिटायर हो चुके थे, तो  परिवार चलाने का दबाव बढ़ गया था।


मेरी माँ ब्रह्माकुमारीज़ के सत्संगों में जाती थीं। उन्होंने सुना था कि वहाँ मानसिक परेशानियों का समाधान होता है, इसलिए मुझे वहाँ सात-दिन के कोर्स के लिए ले गईं। मेरी ही उम्र के एक भाई से मैंने कोर्स सीखा और ईश्वर, आत्मा, और ध्यान जैसी नई अवधारणाओं से परिचित हुआ।


ब्रह्मा कुमारीज में शामिल होने के लिए प्रेरणा

मैंने ब्रह्मा कुमारीज़ से जो ज्ञान लिया, उससे मुझे खास अनुभव होने लगे। ऐसा लगा जैसे कोई परमात्मा मुझसे ही बात कर रहा हो, कि यह ज्ञान विशेष रूप से मुझे ही दिया जा रहा है। ज्ञान सुनना मुझे बहुत अच्छा लगता था और ज्ञान के कोर्स के सात दिनों के भीतर ही मुझे एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिल गई। इस कारण मेरा विश्वास ब्रह्मा कुमारीज़ पर और बढ़ गया।


जिस भाई से मैं कोर्स ले रहा था, हमारी अच्छी मित्रता बन गई। वे सिंगल थे और स्वावलंबी होकर पूरे समाज की सेवा कर रहे थे। यह जीवनशैली मुझे प्रेरित करती थी - अपना ख्याल रखते हुए दूसरों की सेवा के लिए जीवन समर्पित करना। वहां की बहनों को देखकर भी प्रेरणा मिली। उन्होंने अपना पूरा जीवन भगवान, मानवता, और समाज की सेवा में लगा दिया है। उनका लक्ष्य इस कलयुग को सतयुग में बदलना है। मुझे लगा कि इस लक्ष्य के लिए प्रयास करना दुनिया की सबसे बड़ी सेवा होगी।


साथ ही, उन्होंने शुद्ध अन्न, शुद्ध मन, और शुद्धता के पालन पर हमेशा ध्यान दिया। यह बात भी मेरे लिए बहुत प्रेरणादायक थी। इन सभी कारणों ने मुझे ब्रह्मा कुमारीज़ में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।


 ब्रह्माकुमारी संस्था के छिपे हुए खतरे

मुझे आज भी वो पहला दिन याद है जब मैं ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़ा था। एक अलग सी शांति, शुद्धता की अनुभूति हो रही थी। लेकिन समय के साथ, कई बातें जो शुरू में अच्छी लगती थीं, अब खतरे की घंटी  बजाती हैं।


        खान-पान के बारे में उनका रवैया बेहद सख्त था। उनका मानना था कि हमें केवल अपना या किसी बीके भाई-बहन का बनाया भोजन करना चाहिए। कोई बाहरी खाना नहीं, यहाँ तक कि होटल या शादियों में भी नहीं।  ये छोटी सी बात लगती है, लेकिन इसी बहाने अपने परिवार और रिश्तेदारों से दूरी बनने लगती है। किसी की बेटी की शादी है, मां ने प्यार से मिठाई भेजी है, लेकिन उसे खाने का पाप मन में भर देते हैं। अपने भाई के हाथ की बनी रोटी खाने की जगह, हम बीके सेंटर में दूसरे भाई-बहनों के साथ रूखा-सूखा खाना स्वीकार करते हैं। ये उस आत्मिक प्रेम और भोजन के सामाजिक महत्व को धीरे-धीरे नष्ट कर देता है।


        वे कहते थे कि ब्रह्मा बाबा की मुरली और उनका साहित्य ही सच्चा ज्ञान है। बाकी सब - अखबार हों, फिल्में हों, या  दुनिया में हो रही घटनाएं – ये सब वाहियात और ध्यान भटकाने वाली हैं। मुझे याद है कैसे उन्होंने मुझे एक प्रतिष्ठित कलाकार की फ़िल्म देखने से रोका था, यह कहते हुए कि ये मेरे लिए अच्छा नहीं। मुझे लगा जैसे मुझे सोचने-समझने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है।


    सबसे भयावह थी वो बात कि हमें अपनी कोई व्यक्तिगत ज़िंदगी नहीं रखनी थी। शादी मत करो, बच्चे मत पैदा करो, अपना करियर भी ज्यादा महत्वपूर्ण मत समझो। उनका कहना था कि हमारी शक्ति, पैसा, समय, यहाँ तक कि हमारे विचार भी बाबा को अर्पित होने चाहिए। इसने मुझे मेरी स्वतंत्रता से दूर कर दिया, मुझे पूरी तरह उन पर निर्भर बना दिया, जैसे मेरा अपना कोई अस्तित्व ही न हो।


    विनाश की बात तो एक अलग ही आतंक का माहौल बना देती थी। वे हमेशा कहते कि दुनिया जल्द ही खत्म होने वाली है। मैं 1998 में ब्रह्मा कुमारी संस्था से जुड़ा था। उस समय, 2000 में विनाश होने की भविष्यवाणी प्रचलित थी। सूरज भाई के कई क्लासेस इसी भविष्यवाणी पर आधारित थे। उनका कहना था कि 2000 तक कृष्ण का जन्म होगा, लक्ष्मी नारायण का राज्य आएगा, और 2036 तक श्री कृष्ण बड़े होकर लक्ष्मी नारायण बन जाएंगे। उनका स्वयंवर श्री राधे से होगा, जो बड़े होकर श्री लक्ष्मी बनेंगी।


    यह भविष्यवाणी लोगों को भ्रमित कर रही थी। उन्हें डराया जा रहा था कि विनाश निश्चित है, और वे भाग्यशाली हैं कि वे विनाश से पहले भगवान को पहचानने और उनके पालन में रहने में सक्षम हैं। यह उन्हें एक तरह का दायित्व भी महसूस कराता था, जैसे कि वे भगवान और बीके भाई-बहनों के प्रति कृतज्ञ हैं।


    ब्रह्माकुमारी संस्था में बहुत सी बातें जो शुरुआत में शांति और उद्देश्य का मार्ग लगती थीं, अब मुझे यह सब खतरों के चिन्ह लगते  हैं। ये लोगों से उनका परिवार छीन लेती हैं, उन्हें किसी भी बाहरी जानकारी से दूर रखती हैं, और एक आज्ञाकारी, परजीवी मानसिकता को बढ़ावा देती हैं। यह एक ऐसा मार्ग है जिस पर चलते हुए सावधानी बरतनी बेहद जरूरी है।


ब्रह्माकुमारीज़ में सात दिन का कोर्स 

मैं आपको बताना चाहूंगा कि ब्रह्माकुमारीज में शामिल होने से पहले मेरा जीवन कैसा था। मैंने 1998 में ब्रह्माकुमारीज ज्वाइन किया था। उस समय मैं नौकरी की तलाश कर रहा था और बहुत निराश था। नौकरी के अवसर बहुत कम थे और हमारी आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी कि मैं अपना खुद का व्यवसाय शुरू कर सकूं। मेरे पास एक ही विकल्प था कि मैं नौकरी करूं।


मैंने स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी और नौकरी की तलाश में था। मैं काफी संवेदनशील व्यक्ति था और थोड़ी सी भी समस्या होने पर मैं निराश हो जाता था।ब्रह्माकुमारीज ज्वाइन करने से पहले भी मैं निराशा के दौर से गुजर रहा था। मुझे नौकरी की तलाश थी क्योंकि मेरे पिताजी सेवानिवृत्त हो गए थे और मुझे किसी भी तरह से खुद को कमाते हुए देखना आवश्यक हो गया था।उस समय मेरी माताजी ब्रह्माकुमारीज में जाती थीं। वह कोई समर्पित अनुयायी नहीं थीं, लेकिन एक सत्संग के रूप में वह जाती थीं। उन्होंने सुना था कि वहां मानसिक समस्याओं का भी इलाज होता है। उन्होंने मुझे बताया कि वहां जाकर सात दिन का कोर्स कर लूं। उन्होंने कहा कि अगर मुझे अच्छा लगेगा, तो मैं कर सकता हूं। मैं अपनी मां के साथ वहां गया।वहां कोर्स कराने वाला भाई मेरी उम्र का था। उसने मुझे कोर्स कराया।


ब्रह्माकुमारीज में शामिल होने की वजह 


जब मैंने ब्रह्माकुमारीज में सात दिन का ज्ञान का कोर्स किया तो मुझे कुछ विशेष अनुभव हुए। मुझे लगा जैसे मुझे विशेष ज्ञान मिल रहा है जो मुझे महत्वपूर्ण बनाता है। इसी कोर्स के दौरान, मुझे एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी भी मिल गई। इससे मुझे लगा कि ब्रह्माकुमारीज से जुड़ने पर वास्तविक लाभ मिलता है। मैंने यह भी देखा कि कैसे ब्रह्माकुमारीज के सदस्य अविवाहित होते हुए भी अपने जीवन को संभालते हैं और समाज सेवा करते हैं। यह देखकर मुझे प्रेरणा मिली कि मैं भी ऐसा जीवन अपना सकता हूँ। मुझे यह तथ्य भी आकर्षित करता था कि ब्रह्माकुमारीज में सदस्य अपना जीवन भगवान, मानव, और समाज की सेवा में समर्पित कर देते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य ही संसार को बदलना है, और इस महान कार्य में अपनी भूमिका निभाने की उमंग मुझमें भी जाग गई। इसके अलावा, उनकी शुद्ध अन्न, शुद्ध मन, और शुद्ध जीवन के सिद्धांतों ने मुझे बहुत प्रभावित किया।


ब्रह्माकुमारीज़ की कुछ मान्यताऐं 


बिलीफ सिस्टम में सबसे पहले तो उन्होंने बतलाया है कि जैसे गीता में वर्णित है, जब जब धर्म की ग्लानि होती है, तो धर्म स्थापना के लिए परमपिता परमात्मा अवतरित होते हैं और पुनः धर्म की स्थापना करते हैं। उसी के आधार पर, इन्होंने कहा है कि परमपिता परमात्मा, जो हैं इस धरा पर अवतरित हो गए हैं और एक साधारण मानव का सहारा लेकर, उनके तन का सहारा लेकर, यह गीता ज्ञान सुना रहे हैं।


जैसे इस श्लोक में बोला गया है कि युगे युगे, तो इन्होंने युगों की व्याख्या इस तरीके से की है कि पूरा जो सृष्टि चक्र है, वह 5000 वर्ष का है। मतलब, इसमें ही सारा खेल निर्धारित कर दिया है। 1250 वर्ष सतयुग के, 1250 वर्ष त्रेता युग के, 1250 द्वापर, और 1250 कलयुग के, और कलयुग और सतयुग का जो ट्रांजिशन पीरियड है, संधिकाल है, उसको कर दिया है संगम युग। तो यही वह युग है जिसमें वह परमपिता परमात्मा अवतरित होते हैं और साधारण तन  मतलब दादा लेखराज के तन का सहारा लेकर, उनका नाम रखते हैं, ब्रह्मा। मतलब, दादा लेखराज ही ब्रह्मा हैं, और परमपिता परमात्मा शिव, सच्चे गीता ज्ञान दाता हैं। यह इनका बिलीफ सिस्टम है।


यह सृष्टि चक्र है 5000 वर्ष का, और हम सभी आत्माएं हैं, जो सतयुग से लेकर के कलयुग के अंत तक अपना पार्ट प्ले करती हैं। जिसमें जो सतयुग की जो आत्माएं हैं, जो सतयुग में जो पार्ट प्ले करती हैं, वह देवी देवता रहती हैं। वो पूरे सृष्टि चक्र में पूरा संगम युग तक अपना पार्ट प्ले करती हैं, और वह ज्यादा से ज्यादा 84 जन्म ले सकती हैं। और कम से कम हर आत्मा, जो है, वह एक जन्म लेती है। मतलब, मोक्ष की कोई गुंजाइश ही नहीं है, कोई मोक्ष का कोई इसमें रोल नहीं है। हर आत्मा को पार्ट प्ले करने के लिए इस सृष्टि पर आना ही पड़ता है।


सतयुग के आदि में जो आत्माएं रहती हैं, वह धीरे-धीरे अपनी कलाएं खोती हैं। मतलब, डिग्रेड होती हैं उनकी क्वालिटीज, और वह त्रेता में आती हैं। फिर त्रेता से द्वापर में आती हैं, द्वापर से फिर कलयुग में आती हैं। जिसमें सारी कलाएं इनकी खत्म हो जाती हैं। इसलिए, दुःख को प्राप्त होती हैं, और परमपिता परमात्मा सुख की प्राप्ति के लिए फिर से इनको अडॉप्ट करते हैं। और फिर से देवी देवता धर्म की स्थापना करने के लिए इनको पवित्र श्रीमत देते हैं। और जिस श्रीमत को फॉलो करके, ये आत्माएं सारे अपने परमधाम में वापस जाती हैं, और फिर वापस यह सृष्टि चक्र हु बहु रिपीट होता है। 5000 वर्ष बाद हु बहु रिपीट होता है। इसका मतलब यह है कि अभी 5000 वर्ष पहले भी यह वीडियो बनाया गया था, और अभी फिर बना रहे हैं, और आगे ऐ कल्प कल्प बनाते रहेंगे। ये इनका बिलीफ सिस्टम है।


एक बात और मैं कहना चाहता हूँ कि इस परिवर्तन के दौरान जो भी आत्माएं हैं, जो इस ज्ञान को अडॉप्ट नहीं करेंगी, वह सजाएं खा कर के अपने परम परमधाम में वापस जाएंगी। बाकी जो इनके बच्चे बनेंगे, जो इस ज्ञान को अडॉप्ट करेंगे, वे पास विथ ओनर बन करके मतलब इनको कोई भी कष्ट नहीं होगा। परमधाम में जाएंगे तो इनको कोई भी कष्ट नहीं होगा। यह सुख पूर्वक अपने परमधाम में वापस जाएंगे।


एक बिलीफ सिस्टम और है कि ब्रह्मा बाबा जो उर्फ दादा लेखराज हैं, वह पहले ब्रह्मा बनते हैं। ब्रह्मा का पाठ पूरा होने के बाद यही आत्मा जो है, वह कृष्ण बनती है। फिर कृष्ण जो है, वह बड़े होते हैं। स्वयंवर इनका होता है श्री राधे से, और जब राधे और कृष्ण बड़े होते हैं, तब इनका लक्ष्मी नारायण का एक डायनेस्टी स्थापन होती है। जिसको सतयुग के पहले प्रिंस पहले शासक कहेंगे और वह बनते हैं। फिर नारायण बनने के बाद में, जैसे जैसे युग बीतता है, टाइम बीतता है, त्रेता युग में आत्मा तो यही आत्मा है, मतलब दादा लेखराज की आत्मा, फिर त्रेता युग में श्री राम बनती है और यही आत्मा है। फिर पूरे सृष्टि चक्र में हीरो पाठ धारी बनती है और त्रेता युग के बाद अपने द्वापर युग में आकर राजा विक्रमादित्य का पार्ट ऊंचा पार्ट उनका है और पूरे सृष्टि चक्र में पूरा ऊच जितना पार्ट है व सब दादा लेखराज के है।


एक बिलीफ सिस्टम और है कि मनुष्य योनि की आत्माएं मनुष्य ही बनती हैं, और जैसे अपने शास्त्रों में बोला गया है, कि अलग-अलग योनियों से होकर, मनुष्य जन्म की प्राप्ति होती है, तो ऐसा ऐसा इनमें नहीं है। यह लोग यह मानते हैं कि मनुष्य की आत्मा मनुष्य ही बनती है, कुत्ते की आत्मा कुत्ता ही बनेगी, हर आत्मा जो है, जानवर की आत्मा जानवर ही बनेगी। इस टाइप से उसी योनि में ही आकर, हमें अपने कर्मों की सजा होती है, वह हमें भोगनी पड़ती है। तो कहने का भाव यह है कि मनुष्य की आत्मा मनुष्य ही बनेगी, अपने कर्मों के हिसाब से।


ब्रह्माकुमारीज़ में दैनिक जीवन


ब्रह्मा कुमारी का दैनिक जीवन कुछ इस तरह बहुत ही स्ट्रिक्ट रहता है। अगर आप उनका फॉलो करते हैं, तो सबसे पहले, वे सुबह 3:30 बजे उठते हैं, जिसे अमृत वेला कहा जाता है।  साढ़े 3:30 बजे इनका गीत बजता है, अमृत वेला में ध्यान मगन होकर के परमपिता परमात्मा शिव का ध्यान करना होता है। इस ध्यान के अंतर्गत स्वयं को आत्मा समझ कर के परमपिता परमात्मा का ध्यान, उनका स्तुति या उनके की विशेषताएं को स्मरण करना – यह एक मेडिटेशन की प्रक्रिया होती है जिसमें परमपिता परमात्मा का ध्यान करते हैं।


शिव पिता परमात्मा का स्वयं को आत्मा समझ कर के परमपिता परमात्मा को याद करना – जिसे ध्यान भी नहीं बोलते – उसको याद की संज्ञा देते हैं क्योंकि ध्यान जो है वो भक्ति का शब्द है। तो भक्ति इनके हिसाब से जो है वो सेकेंडरी है। तो इसको याद बोलते हैं कि परमपिता परमात्मा को याद करना है,  उसके गुणों को याद करना है।


फिर अपने दैनिक जो कर्म रहते हैं, फ्रेश होना आदि, वो उससे मुक्त हो करके फिर 7:00 बजे से 8 बजे तक इनकी स्पिरिचुअल क्लास रहती है, जिसको कि मुरली बोला जाता है। उसको भी पठन पाठन करना आवश्यक होता है और एमफसिस इस बात का रहता है कि आप यह मुरली क्लास जो है वो सेंटर में आकर सुनिए। घर में जो सुनेंगे वो सेकेंडरी बच्चे हैं। जो सेंटर पर आकर मुरली सुनते हैं वो एक तरीके से लगे बच्चे हैं – मतलब परमपिता परमात्मा की अधिक नजदीक हैं।  वो तो सेंटर पर बुलाने का एक तरीका है उनका जिससे कि  सेंटर पर आकर के ही मुरली का पठन और पाठन करना पड़ता है।


सात से आठ की मुरली होने के बाद 8 बजे नाश्ता आदि करने के  बाद आप अपने दैनिक कार्य कर सकते हैं। जो जॉब करते हैं वो जॉब करने चले जाते हैं,  जो बिजनेस करते है वह  अपने बिजनेस में चले जाते हैं,  जो घर में रहते हैं वो घर में चले जाते हैं। और जो सेंटर्स में रहते हैं वह अपनी दिन भर की जो सेवाएं आदि होती हैं, उसकी रूपरेखा बनाते  हैं।


मैं तो बाहर का व्यक्ति था तो मैं अपना जॉब करने निकल जाता था। जॉब करते टाइम भी दुनियावी बातों में नहीं उलझना है।  हमको जैसे दुनियावी बातें होती हैं – कि बातचीत करना, लोगों से मिलना जुलना – यह सब भी एक तरीके से निषेध ही होता है।  और एफेसस इस बात का होता है कि आप अपने कर्म करते हुए परमपिता परमात्मा की स्मृति में ही रहें। और जितना  परमात्मा को याद करते हुए ही अपने कर्म करेंगे वह  क्वालिटी कर्म की श्रेणी में आएंगे।  पर चिंतन पर प्रदर्शन से मुक्त होना है, दूसरों की बातें नहीं सुननी हैं,  पिक्चर आदि नहीं देखनी हैं,  मार्केट में भी उतना ही जाना है जितना कि आपको जरूरत है। और फिर मार्केट में फालतू घूमना आदि ये सब निषेध होता है।


फिर शाम को वापस आने के बाद फिर से फ्रेश होने के बाद फिर से ध्यान करना होता है, जिसको 6:30 से 7:30 नुमा शाम योग बोलते हैं। और इस योग में भी वही जो सुबह की प्रक्रिया रहती है वही रहती है।  फिर 7:30 बजे के बाद फिर से अपन को मुरली का पठन वगैरह करना। यह सब  करके फिर 8:00 बजे खाना  खाकर 10 बजे तक अपने को सो जाना होता है।


ब्रह्माकुमारीज़ संस्था में सदस्यों पर नियंत्रण कैसे किया जाता है?


ब्रह्मा कुमारी संस्था में आने वाले सभी लोगों को स्टूडेंट्स या बच्चे कहा जाता है, बाबा के बच्चे। और आपस में जो भी संबंध होता है सिर्फ भाई-बहन का होता है। भाई-भाई या भाई-बहन, और आत्मिक रूप से यह कहा जाता है क्योंकि यह लोगों का विश्वास है कि हम सभी आत्माएं हैं, शरीर तो अपना वस्त्र है, कॉस्ट्यूम है। आत्मिक रूप से हम सभी आत्माएं भाई-भाई हैं।


अब सदस्यों पर नियंत्रण कैसे किया जाता है, यह एक विशेष विषय है जिस पर मैं प्रकाश डालना चाहता हूं। जब आप परमपिता परमात्मा को स्वीकार करते हैं, तो इसे कन्विंसिंग बुद्धि या निश्चय बुद्धि की निशानी कहा जाता है। लेकिन, कई बार सदस्यों के मन में जेन्युइन प्रश्न भी उठते हैं, जैसे कि परमपिता परमात्मा ने आज हमें यह क्यों कहा? इन प्रश्नों पर चर्चा करने का वहां कोई अवसर नहीं होता है। कहने के लिए वहां शिक्षक मौजूद होते हैं, लेकिन उनसे भी हम इन विषयों पर चर्चा नहीं कर सकते। यह बात मेरी समझ में नहीं आ रही है। कृपया इस बारे में थोड़ी व्याख्या करें।


उदाहरण के लिए, 5000 वर्ष के सृष्टि चक्र का विषय हमेशा सामने आता है। यह कहा जाता है कि सृष्टि चक्र 5000 वर्ष का होता है और यह बार-बार दोहराता रहता है। इस बात को लेकर मेरे मन में हमेशा संदेह रहा है और मैं इसके बारे में चर्चा करने का प्रयास करता रहा हूं, लेकिन हमेशा मेरी बात को खारिज कर दिया जाता था।


दो तरीके से नियंत्रण किया जाता है। पहला है लालच और दूसरा है डर। इस तरीके से नियंत्रण करते हैं लोग। लालच आपको यह बात का है कि आप जब इस संस्था से जुड़ गए, परमपिता परमात्मा को अपने सच्चे दिल से अपना पिता मान लिया, दिल से कहो "मेरा बाबा"। जब आपने दिल से कह दिया कि "मेरा बाबा है", ये तो आपको जो है उसकी हर बात को हाजी ही करना है। और जब जितना हाजी करेंगे,  उतना आप परमात्मा के नजदीक पहुंचेंगे।


तो सबसे पहले जो मैंने बताया कि लालच... लालच क्या मिलता है?  कि जब आप इस ध्यान ज्ञान को अडॉप्ट करते हो, परमपिता परमात्मा की श्रीमत पर चलते हो, जब हाजी-हाजी का पार्ट प्ले करते हो तो आपको स्वर्ग की बादशाही मिलती है। और बादशाही केवल एक जन्म की नहीं मिलती, वो 21 जन्म की बादशाही मिलती है। मतलब 21 जन्म आपको सुख संपूर्ण, शांति संपूर्ण, प्रेम संपूर्ण, पवित्रता संपूर्ण और धन-धान्य से भरपूर जिंदगी मिलती है। आपको जिसको सतयुग का एक सुख-स्वरूप, सुखी जीवन कहते हैं, वो मिलता है। तो यह हो गया लालच।


तो यह लालच जब मन बुद्धि पर हावी हो जाता है तब वो कुछ भी बात कहे, हम उस पर क्वेश्चन नहीं उठा सकते। क्वेश्चन नहीं कर सकते किसी भी बात पर। जैसे लॉजिकल क्वेश्चन भी होते हैं। जैसे कई बार आता भी था कि मुरली में उदाहरण के लिए मैं बताऊं कि यह ड्रामा हुबहू रिपीट होता है, तो हुबहू रिपीट होने के बारे में हम डिस्कशन नहीं कर सकते। केवल उसको स्वीकार कर सकते हैं। स्वीकार करने का भाव यह रहता है कि आप इसको स्वीकार कर लो तो आपको स्वर्ग की बादशाही मिलेगी। हर चीज को स्वीकार करना, या एक्सेप्टेंस, सब  मै हाजी का पार्ट है।


दूसरा होता है डर। डर मतलब आपने अगर उस पर क्वेश्चन उठाया, संशय उठाया तो इनका स्लोगन है कि "निश्चय बुद्धि विजयंती और संशय बुद्धि विनश्यन्ति"। संशय जहां किया आपका, तो विनाश हो जाएगा। त्रेता में चले जाओगे, द्वापर में चले जाओगे, दास-दासी बन जाओगे, प्रजा में चले जाओगे। यह इनके वाक्य है। तो हर कोई, कोई भी स्वीकार करेगा ही ना कि मैं तो राजा-रानी ही बनूंगा। तो वो प्रश्न वहां से खतम हो जाते हैं। प्रश्न उठाना मतलब वहां पर एक तरीके से क्या बोलते हैं, उसको संशय... संशय की निशानी है। तो यह हो गया डर।


दूसरा डर यह दिखाएंगे कि अगर आपने इसको एक्सेप्ट नहीं किया या भगवान का हाथ छोड़ दिया, या आप इस ज्ञान पर नहीं चल पाए तो आपको बहुत सारे प्रॉब्लम्स आ जाएंगे लाइफ में। इस तरीके से भी एक डर दिखाते हैं।


तो इस तरह जो है वो नियंत्रण किया जाता है सदस्यों पर। मूल तो ये है कि जो बहनें रहती है वहां की, उनका एक वो है कि जैसे "बम बर्डिंग लव बम बार्डिया"... रानी बनने वाले आत्माएं हो, बहुत ऊंचे हो। और भगवान ने कोटों में कोई, और कोई में भी कोई बना के आपको चुना है। तो एक-एक चूज सोल हो आप। और फिर यही बातें जो सबकॉन्शियस में बैठती है तो हम दुनिया में भी अपने आप को बहुत ऊंचा समझने लगते हैं। और यह फिर संस्था को छोड़ना बड़ा मुश्किल हो जाता है।


इस तरीके से नियंत्रण में चलाते हैं। एक बार जब इनको समझ में आ जाता है कि हम इनके नियंत्रण में चलने लगे हैं, तो जो भी इंचार्ज है उनके इशारों को, इशारों को हमको समझते हुए उसको फॉलो करना पड़ता है। और फॉलो नहीं करते हैं, तो फिर वह एक तरीके से अपने से दूरी बना लेते हैं। या, जो भी अच्छी फीलिंग आती है, वह वहां पर आना बंद हो जाती है। तो इस तरीके से नियंत्रण करते हैं। बड़ा स्वीट नियंत्रण होता है, कोई इसमें छड़ी या कोई भी उसमें चाबुक का इस्तेमाल नहीं होता। और नियंत्रण तो इस तरीके से होता है कि हम पैसे देकर भी काम करते हैं वहां पे। बाहर की दुनिया में अगर काम करना है तो हम पैसे मांगते हैं पहले, यहां पे हम पैसे भी दो और काम भी करो। ये स्थिति है।


ब्रह्माकुमारीज़ के प्रति मेरे परिवार की प्रतिक्रिया  


जब मैं ब्रह्मा कुमारी संस्था से जुड़ा और फिर बाद में संस्था को छोड़ दिया, तो इस दौरान मेरे परिवार ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विशेष रूप से उनकी प्रतिक्रियाएं उल्लेखनीय थीं। हालांकि मेरे परिवार वाले मुझे समझाते थे कि परमात्मा किसी के शरीर में इस तरह आना इतना सहज नहीं होता, फिर भी मुझे इसका इतना नशा चढ़ गया था कि मैंने किसी की नहीं सुनी। मेरे घर में धार्मिक लोग थे। मेरे जीजा जी कट्टर सनातनी हैं और मेरे मामा जी आरएसएस के सक्रिय सदस्य हैं। उनके व्याख्यान भी होते हैं और उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं। उन सबने मुझे समझाने का प्रयास किया कि परमात्मा किसी के शरीर में नहीं आते। यह एक अलग विषय है, लेकिन ब्रह्मा कुमारी संस्था का ब्रेनवाशिंग सिस्टम उन्हें ज्ञात था और उन्होंने मुझे इसके बारे में बताने की बहुत कोशिश की, पर मैंने उनकी नहीं सुनी। इसका कारण था मेरा अत्यधिक प्रभावित होना। जैसा कि मैंने पहले भी बताया, एक आदर्शवादी होने के नाते मैं दुनिया के लिए कुछ करना चाहता था। मुझे लगा कि यह एक अच्छा मंच है जहां समाज सेवा होती है, लोगों को भगवान  के बारे में बताया जाता है। साथ ही, लोगों की मानसिक समस्याओं, दुनिया में व्याप्त अवसाद और तनाव का समाधान यहां मिलता है। 


मुझे खुद भी इससे अच्छा अनुभव हुआ था। इसलिए, मुझे लगा कि इससे बेहतर और कुछ हो ही नहीं सकता। यहां का ज्ञान इतना अच्छा है, शुद्धता पर बल है, और स्वयं परमपिता परमात्मा का ज्ञान दिया जा रहा है। वे स्वयं रोज क्लास लेकर हमें पढ़ा रहे हैं। एक निश्चित दिनचर्या है। साथ ही, मुझे हमेशा से लगता था कि मैं किसी से अपने मन की बात कह सकूं। यहां ऐसा माहौल था कि आपकी मन की कोई भी समस्या हो, वह बाबा से कह दीजिए या फिर डायरी में लिखकर दे दीजिए। कागज में लिखकर बाबा के नाम पत्र दे दीजिए। ये सारी बातें मुझे बहुत अच्छी लगीं, इसलिए मैंने इसे पूरी तरह वास्तविक माना। मैंने कभी इसके 'कल्ट' होने के बारे में नहीं सोचा। 'कल्ट' क्या होता है, इस बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता था। मैंने इस संस्था को इतना स्वीकार कर लिया था कि परमात्मा का अवतरण हो गया है और वे सतयुग की स्थापना कर रहे हैं। मुझे लगता था कि मैं ही कम पढ़ पा रहा हूं क्योंकि श्रीमत में जो महावाक्य आ रहे थे, मैं उनका पूरी तरह पालन नहीं कर पा रहा था। इसलिए, कमी मुझमें है, फिर भी परमात्मा की कृपा मुझ पर है कि उन्होंने मुझे अपना बच्चा बनाकर रखा है।


ब्रह्माकुमारीज़ की मान्यताओं पर प्रश्न 


जैसे मैंने बताया कि मेरे दिमाग में विनाश और परिवर्तन की बातें घूमती रहती थीं। मैंने कभी अपनी लाइफ को प्लान नहीं किया, ज्यादा से ज्यादा चार-पांच साल के लिए ही सोचा। जब मैंने गौर से देखा तो सबसे पहली बात जो मुझे खटकी वो थी इनकी आलीशान रहने की व्यवस्था। ऊंचे-ऊंचे रिट्रीट सेंटर, हाई लेवल का इंफ्रास्ट्रक्चर, हाई क्लास फर्नीचर, टाइल्स, साउंड सिस्टम, चार-चार हजार रुपए का नल, ये सब देखकर मेरे मन में सवाल उठा कि जब विनाश होना ही है तो ये सब क्यों? मैंने इन लोगों से कई बार पूछा भी, लेकिन वो टालमटोल करते थे। शायद उन्हें पता था कि विनाश जैसा कुछ होने वाला नहीं है।


मुझे लगता था कि इनको अच्छी रहने की व्यवस्था और आराम मिलना चाहिए क्योंकि ये सब भगवान के बच्चे हैं। इनके जीवन में कोई डिस्टरबेंस नहीं आना चाहिए। अंत में तो ये सेंटरों में ही रहेंगे, बाकी सब धराशाई हो जाएगा। इसलिए इतना फ्लोरिशमेंट क्यों? उस समय मैं तो हाँ कर देता था, लेकिन बाद में मुझे समझ नहीं आता था कि जब विनाश होने वाला है तो इतना हाई लेवल का इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने की क्या जरूरत है? इनके सवालों से मुझे कई बार डाउट आता था कि मैं गलत डायरेक्शन में जा रहा हूँ।


दूसरा, कन्याओं का समर्पण मुझे खटकता था। शिव पिता भगवान से उनकी शादियां रचाई जा रही थीं। एक तरफ तो कहा जाता था कि शादी नहीं करनी है, दूसरी तरफ परमपिता परमात्मा से शादी करने के लिए एक-एक लाख रुपए तक लिए जाते थे। मैंने पूछा कि परमात्मा से शादी कराने का इतना बड़ा ऑकेजन क्यों? इसका जवाब यही था कि यह तो उनके मां-बाप का पैसा है। अगर कन्या शादी करती है तो मां-बाप दहेज देते ही हैं। यहां तो परमपिता परमात्मा से शादी हो रही है, तो दहेज के नाम पर माता-पिता अपना दहेज संस्था में देते हैं।


मुझे लगा कि ये लोग दहेज प्रथा को प्रोत्साहित कर रहे हैं। अगर दहेज प्रथा को बंद करना है तो इसे और क्यों बढ़ावा दिया जा रहा है? भगवान को दहेज की क्या जरूरत? यह भगवान का अपमान है। भगवान के नाम पर पैसा लेना और भगवान के नाम पर ही बोलना कि कन्याओं की भगवान के साथ शादी कर रहे हैं, यह गलत है।


बाद में मुझे पता लगा कि ये लोग सोना भी लेते हैं। मुझे समझ नहीं आता कि भगवान को सोने या पैसे की क्या जरूरत है? कन्याओं का समर्पण सेवा के लिए होता है। यह अच्छी बात है, उसका स्वागत होना चाहिए। इतना पैसा, धन-धान्य देकर क्या हासिल होता है?


धीरे-धीरे मैंने इधर-उधर सर्च करना शुरू किया। मुझे कई लोगों के अनुभव समझ में आए। कई कन्याओं का सुसाइड और डिप्रेशन भी समझ में आया। मैंने बहुत सारी चीजें सुनीं। हमारे सेंटर में भी कई कन्याएं छोड़कर चली जाती थीं। मैं पूछता था कि ये छोड़कर क्यों गई हैं, कहां गई हैं, कहां रहती हैं, अभी इनका कौन है देखने वाला? मुझे कोई जवाब नहीं मिलता था। हमें इनसे कुछ भी पूछने का कोई अधिकार नहीं था।


2019 में कोविड काल के बाद, मुझे यह एहसास हुआ कि ब्रह्माकुमारी संस्था केवल पैसा और लोगों को आकर्षित करने में रुचि रखती है। उनका ईश्वरीय परिवार होने का दावा झूठा है क्योंकि वे ईश्वरीय परिवार के मूल्यों का पालन नहीं करते हैं। एक सामान्य परिवार में, सदस्य एक दूसरे की देखभाल करते हैं और उन्हें सही रास्ते पर चलने में मदद करते हैं। लेकिन ब्रह्माकुमारियों में यह भावना नहीं है। निष्ठुरता के नाम पर वे पत्थर दिल बन गए हैं। मैंने यह सब ध्यान से देखा और सहन किया। लेकिन जब मुझे एहसास हुआ कि वे निष्ठुर और पत्थर दिल बन रहे हैं, तो मैंने इस संस्था में रहने पर पुनर्विचार करने का फैसला किया।


हमारे सेंटर में भी जो सदस्य थे, वे मुझे पूरी तरह से अपने ऊपर निर्भर देखना चाहते थे। वे चाहते थे कि मैं उन पर पूरी तरह से आश्रित हो जाऊं। और मैं लगभग आश्रित हो ही गया था। लेकिन फिर भी मैंने हिम्मत करके अपना एक रास्ता चुना। मैंने सोचा कि जो होगा, होगा। लेकिन मैं कभी भी अपने सिद्धांतों का साथ नहीं छोड़ूंगा। मैं अकेले जीने के लिए तैयार हूं। अगर मुझे अकेले ही एक कमरे में रहकर अपनी पूरी जिंदगी निकालनी पड़े, तो मैं उसके लिए भी तैयार हूं। लेकिन मैं गलत काम में अपना योगदान नहीं दे सकता। मैं गलत काम नहीं कर सकता। मेरा विवेक मुझे ऐसा करने की अनुमति नहीं देता। तो वही टर्निंग पॉइंट था जब मैंने फिर से निर्णय लिया कि मुझे इसके बारे में फिर से विचार करना होगा।


यह ब्रह्मा कुमारी संस्था के विषय में मैं एक बात और कहना चाहूंगा। यह संस्था दावा करती है कि यह एक ईश्वरीय परिवार है। यह परिवार तब तक ही आपका परिवार है जब तक आप इनको कुछ देते हैं। जब तक आप इनको तन, मन, धन, समय, स्वास्थ्य, और संकल्प की सेवा देते हैं, तब तक यह आपके परिवार के सदस्य बने रहते हैं। जब तक यह आपके दिलो दिमाग पर, जीवन पर पूरी तरीके से हावी ना हो जाए।


लेकिन जब आपको इनके किए हुए के एवज में कुछ वापस रिटर्न चाहिए रहता है, तब यह संस्था बन जाते हैं। तब इनके संस्था के नियम सामने आ जाते हैं। यह कहते हैं कि यह तो संस्था है, और वे संस्था की कोई चीज आपको नहीं दे सकते। यदि आपको संस्था की तरफ से कुछ सहयोग चाहिए रहता, तो वो भी उपलब्ध कराने की ये इच्छा नहीं रखते हैं।


और एक बार संस्था से निकल जाने के बाद, यह आपको इस तरीके से भूल जाते हैं जैसे आप कभी उनसे जुड़े ही नहीं थे। जब तक आप इस संस्था के सदस्य बने रहते हैं, तब तक तो ऐसा लगता है कि यही संसार है हमारा, यही हमारा जीवन है, और यही हमारा परिवार है। हम पूरा तन, मन, धन से इनके ऊपर आश्रित हो जाते हैं। लेकिन जब निकलते हैं, तो यह हमको देखते भी नहीं हैं, पूछते भी नहीं हैं कि आजकल आपका जीवन कैसे चल रहा है, और आप जिंदा हो कि मर गए हो।


निकलने के बाद जब मैं इनके सदस्यों से आखिरी बार मिला तो इन्होंने बोला था कि हमारी मित्रता बनी रहेगी और कभी भी मित्रता के संबंध में आपको बात करना है तो आप कभी भी बात कर सकते हैं। उसके बाद मैंने कई मैसेज भी डाले, जैसे हैप्पी न्यू ईयर, हैप्पी दिवाली, हैप्पी होली, और जन्मदिन के, लेकिन इनको कोई भी रिप्लाई देने का मन नहीं होता है। मैं इनकी भावना समझ सकता हूं। क्योंकि खुद फसे हुए लोग रहते हैं, तो जो लोग बाहर निकल जाते हैं, यह लोग उनको दुश्मन समझ लेते हैं। कि यह BK का सदस्य नहीं है, यह शूद्र आत्मा है, यह एंटी BK हो गया है, या यह भगवान से विमुख हो गया है। जबकि ऐसी बात नहीं होती है। हम भगवान के बहुत अच्छे से फॉलोअर रहते हैं। इसीलिए हम जो चीज समझ में नहीं आती, तो हम अलग होकर चलते हैं। लेकिन यह दुनिया में इस तरीके से बिहेव करते हैं जैसे निकलने के बाद कोई संबंध नहीं है।


तो मैं यही बताना चाह रहा हूं कि जो भी सदस्य लोग इनसे जुड़े हुए हैं, वे अपने भावनात्मक तरीके से ना जुड़ें और अपना एक बैलेंस बना के रखें। ताकि जब भी निकलने का समय आए तो आपको कोई तरीके का पछतावा ना हो या कोई चीटिंग की फीलिंग ना हो। क्योंकि यह परिवार नहीं है, यह संस्था है। और संस्था में जैसे हम जुड़ते हैं, वैसे ही इससे जुड़े। और अगर जुड़ना भी है तो ।  नहीं  तो और भी दुनिया में दूसरी तरीके की मेडिटेशन पद्धतियां हैं। आप उन्हे कर सकते हैं। हमारी वेद शास्त्र में सब कुछ दिया हुआ है। भगवान हमारे भीतर ही है। हम अपने भगवान, भीतर के भगवान को पहचाने और संतुलित नॉर्मल जीवन जिए।


संस्था को छोड़ने के बाद की चुनोतीयां 


ब्रह्मा कुमारी को जब मैंने जाना बंद कर दिया, तो एक तरीके से समझ लो कि पूरा मतलब एक जैसे किसी का कोई अपना मर जाता है या अपने या डाइवोर्स हो जाता है, या इस तरीके से कुछ सेट बैक होता है लाइफ में। वही सेम फीलिंग मुझे आ रही थी। दूसरा मैं पूरा मतलब एक तरीके से समझ लो ऐसी फीलिंग आती थी कि मैं पूरा रेगिस्तान में खड़ा हूं और दूर दूर तक कोई भी व्यक्ति मेरे आसपास नहीं है। जबकि मैं जॉब भी करता हूं, मुझे किसी से बात करने का मन नहीं होता था, और बहुत ही एक डिप्रेसिव स्टेट की अवस्था थी, बहुत दिनों तक।


फिर मैंने इंटरनेट पर बहुत सारी चीजें पढ़ना शुरू किया। मैंने देखा कि मेरे जैसे हजारों लोग हैं जिनकी पूरी जिंदगी बिखर चुकी है। वे किसी तरह अपना जीवन जी रहे हैं। मैंने अपने आप को उनसे तुलना की। मुझे लगा कि मेरी जिंदगी तो काफी अच्छी है। मैं आर्थिक रूप से मजबूत हूं और अपनी देखभाल भी कर सकता हूं।


बाकी मेरा कम्युनिकेशन ठीक था। लोगों से मिलना-जुलना भी ठीक था। मेरे लौकिक से मेरे सबसे अच्छे रिलेशन थे। सबने एक तरीके से मन में स्वागत ही किया। यह अच्छा हुआ कि मैंने संस्था छोड़ दी क्योंकि उनको तथ्य पहले से ही नजर आ रहे थे। जब मैंने यह डिसीजन किया कि मैं अब वहां नहीं जा रहा हूं, तो उनको लगा होगा कि अच्छी बात कर रहा है। अब ठीक है। मतलब इस संस्था में कोई ऐसा कोई भविष्य बहुत अच्छा नहीं है। फिर भी, अभी चल रहे हैं जिंदगी में। अकेले जॉब कर रहे हैं। अपने लोगों का सपोर्ट भी है मेरे साथ। तो एक तरीके से नोर्मल जीवन चल रहा है।


संस्था छोड़ने के बाद फिर से सामान्य जीवन बनाने में सहायक बातें 


जब मैंने संस्था छोड़ी तो मुझे बहुत उदासी और अकेलापन महसूस हुआ। ऐसा लग रहा था जैसे किसी प्रियजन की मृत्यु हो गई हो या तलाक हो गया हो। मैंने इंटरनेट पर http://brahmakumaris.info वेबसाइट देखी, जिसमें हजारों लोगों के अनुभव थे जिन्होंने इस संस्था को छोड़ा था। उनके अनुभव मेरे अनुभव से भी बदतर थे, और उन्हें पढ़कर मुझे थोड़ी हिम्मत मिली। मैंने सोचा कि जब ये लोग खुद को संभाल सकते हैं, तो मेरी स्थिति उनसे बेहतर है।


फिर मुझे सोशल मीडिया पर लोकल ग्रुप्स मिले। मैं जिस ग्रुप से जुड़ा हूं, वह अरुण जी उपाध्याय जी का ग्रुप है। अरुण जी खुद भी ब्रह्माकुमारी संस्था से प्रभावित हैं, और उनकी फैमिली भी इस संस्था से जुड़ी हुई थी। उन्होंने बहुत हिम्मत करके यह ग्रुप बनाया है, जिसमें 100 से ऊपर सदस्य हैं। इन सदस्यों से बात करके मुझे हीलिंग की प्रक्रिया महसूस होती है। मैं किसी थेरेपिस्ट के पास नहीं गया हूं, लेकिन जब मैं एक्स मेंबर या अफेक्टेड बीके से बात करता हूं तो मुझे एक तरीके से सेल्फ फीलिंग हो जाती है। विनय जी का  ब्लॉग भी मेरे लिए बहुत मददगार रहा है। इस तरह से मैं खुद को सस्टेन कर रहा हूं और अपने आप को खड़ा करते हुए चल रहा हूं। अभी सब कुछ ठीक है, सपोर्ट सिस्टम भी अच्छा है, और सबके साथ अच्छे रिलेशन हैं।

सपोर्ट ग्रुप्स और कल्ट्स के बारे में पढ़ने से मुझे काफी मदद मिली। मैंने "कोंबटींग विद कल्ट्स" किताब पढ़ी और कल्ट्स के काम करने के तरीके और उनके इतिहास के बारे में काफी कुछ समझा। मैंने देखा कि कल्ट्स समाज के लिए बहुत खतरनाक होते हैं, भले ही वे बाहर से कितने भी अच्छे क्यों न दिखें।


वर्तमान जीवन 


अभी तो फिलहाल मैं जॉब कर रहा हूं और अपने आप को चला रहा हूं। मैं खुद को अपने किसी ना किसी कामों में व्यस्त रखता हूं। मेरे बाकी सारे सिब्लिंग्स मेरे भाई और भाई की फैमिली हैं। मेरा बहुत अच्छा परिवार है। मैं मम्मी के साथ रहता हूं और जीजा जी, जो मैंने आपको बताया था कि कट्टर सनातनी हैं, उनसे समय-समय पर मिलता रहता हूं और उनसे गाइडेंस वगैरह लेता रहता हूं।


तो वापस मैं अपने आप को रिस्टोर कर रहा हूं। वापस जैसे जो अपने बिलीव सिस्टम जो क्रैश हो जाते हैं, कि जो देवी-देवताओं के प्रति जो अपनी भावनाए हो जाती हैं, तो उसके प्रति वापस मैं रिस्टोर करने की कोशिश कर रहा हूं। मैं मंदिरों में जाता हूं और वहां पर भी ध्यान करता हूं। और जैसे जो सनातनी में बताते हैं कि अपना हनुमान चालीसा वगैरह पढ़ते रहो, तो वह भी मैंने शुरू किया है। जिससे मेरा माइंड वापस काफी कंट्रोल में आ गया है।


मैं किसी को दोष नहीं देता, लेकिन इनका जो बिलीफ़ सिस्टम ही ऐसा रहता है कि चले तो चांद तक, नहीं तो शाम तक। जैसे कल्ट में आप नशे में चले जा रहे हैं, चले जा रहे हैं, चले जा रहे हैं, तो पूरी जिंदगी भी आपकी उसी नशे में निकल सकती है। लेकिन वो कोई जिंदगी नहीं है, आप भी मैनिपुलेट होते जा रहे हैं, साथ ही दुनिया को मैनिपुलेट कर रहे हैं, दुनिया को भी धोखे में रख रहे हैं। यह कोई जिंदगी नहीं होती है। मैं तो यही कहना चाहूंगा कि सत्यता को एक ना एक दिन स्वीकार करना ही पड़ता है। सत्यता आपके सामने आती ही है, किसी ना किसी तरीके से।


जो भी सुप्रीम सत्ता है जो इस संसार को चला रही है, उसका स्थान कोई ले नहीं सकता। ये दादा लेखराज वगैरह, मतलब इन लोगों की हिम्मत कैसे होती है कि भाई, अपने आप को परमात्मा, परमात्मा कहलवाने की? मुझे इस बात पर बहुत आश्चर्य होता है। जो सुप्रीम सत्ता है, सुप्रीम शक्ति जो इस दुनिया को चला रही है, उसके स्थान पर खुद को रख देना, यह तो एक तरह से पाप है। मैं तो इसे पाप की श्रेणी में कहूंगा कि अपने आप को सुप्रीम घोषित कर देना और मैं जो कह रहा हूं वही सच है, बाकी सब दुनिया में झूठ ही झूठ है।


देर आए दुरुस्त आए, लेकिन जो भी है, अभी चल रहा है। जिंदगी अच्छी है, मैं खुश हूं। अभी लोगों को भी हेल्प कर रहा हूं जो लोग इससे प्रभावित हैं। जो लोग टेंशन में जीते हैं, इसके बारे में उनको समझ में नहीं आता। कई तो इतने गरीब लोग हैं, गरीब माताएं हैं, जो इसको ही सत्य मान लेती हैं। जैसे, हमने तो शिक्षा दीक्षा ली रखी है, लेकिन जो बिल्कुल भी अशिक्षित हैं, लोग इसको बोल देते हैं। अगर किसी को बोल दे, परमात्मा तुमको ज्ञान दे रहा है, बेचारे भोलेपन में अपने चले आ रहे हैं। उनसे जो करने को कहा जाए, करते हैं भगवान के नाम पर। तो जो इनके निमित्त टीचर्स लोग हैं या इंचार्ज लोग हैं, उनको भी थोड़ा सा मैं जागरूक करना चाहता हूं कि ऐसा ना करें। परमात्मा का स्थान लेने की कोशिश ना करें। परमात्मा को परमात्मा के स्थान पर रहने दो। देवताओं को देवताओं के स्थान पर रहने दो। भगवान ने हमें इंसान बनाकर भेजा है, हम इंसान ही बन जाए, बहुत अच्छी बात है। इंसान अच्छे तरीके से जी के, इंसान बनके ही अच्छे लोगों के मदद करें तो इंसानियत को ही अपनाना, इंसानियत को ही धर्म बना के चलना, यही मेरे हिसाब से सच्चा धर्म है। वही मैं करने की कोशिश कर रहा हूं।





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धन्यवाद!

डॉ. विनय चौधरी


 

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